BA Semester-1 Aahar, Poshan evam Swachchhata - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2637
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता

Unit - III

अध्याय - 7

1000 दिन का पोषण

(1000 Days Nutrition)

पाठ्य सामग्री

1000 दिन का पोषण की अवधारणा

A. अवधारणा, आवश्यकता, बच्चों के विकास को प्रभावित करने वाले कारक

(Concept, Requirement, Factor Affecting Growth of Child)

'1000 दिन का पोषण' की अवधारणा का मुख्य उद्देश्य बच्चों में कुपोषण की कमी से होने वाले कुपोषण की रोकथाम और शिशु मृत्यु दर में कमी लाना है। पोषण हर व्यक्ति के लिए महत्त्वपूर्ण है विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए पर्याप्त पोषण की आवश्यकता होती है। यदि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को नहीं पोषण नहीं मिलता तो उनके होने वाले बच्चे कम वजन के पैदा होते हैं और कुपोषण का शिकार हो जाते हैं। इसलिए गर्भावस्था की शुरूआत से लेकर बच्चे के जन्म के दो साल तक यानी गर्भकाल के 270 दिन और बच्चों के जन्म के दो साल यानी 730 दिन तक कुल 1000 दिनों तक माँ और बच्चे को सही पोषण मिले तो बच्चे का शारीरिक एवं मानसिक विकास के साथ-साथ प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि होती है, जो आगे चलकर बच्चे को बीमारियों से बचाता है तथा स्वस्थ जीवन व्यतीत करता है।

यदि बच्चे को जन्म के एक घण्टे के अन्दर माँ का पहला गाढ़ा दूध (कोलेस्ट्रम) मिल जाय तो बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है और निमोनिया जैसी बीमारी से भी बचाया जा सकता है। इसके अलावा बच्चे को जन्म से लेकर 6 माह तक केवल माँ का दूध पिलाने से बच्चों के मानसिक विकास में वृद्धि होती है और बच्चे कम बीमार पड़ते हैं क्योंकि बच्चे को ऊपर का दूध देने से बच्चे में संक्रमण होने की ज्यादा सम्भावना रहती है इसलिए डॉक्टर भी बच्चे को ऊपरी दूध पिलाने से मना करते हैं।

जब बच्चा छह माह का हो जाता है तो स्तनपान बच्चे के पोषण के लिए पर्याप्त नहीं होता है। इस समय बच्चो तेजी के साथ बढ़ता है इसके लिए उसे अतिरिक्त भोजन की आवश्यकता पड़ती है जो स्तनपान से पूरी नहीं की जा सकती। इसके लिए बच्चे को स्तनपान के साथ-साथ अर्द्ध- ठोस आहार भी देना चाहिए क्योंकि 6 माह से लेकर 24 माह तक के बच्चों को सही पोषण न मिलने से कुपोषण की ज्यादा संभावना होती है। जो बचपन से लेकर पूरे जीवन तक बनी रहती है और वे आगे चलकर बच्चों में पोषण सम्बन्धी बीमारियाँ उत्पन्न करती है। इस पोषण की कमी के कारण बच्चे एनीमिक हो जाते हैं। जिसके कारण उनकी शारीरिक एवं मानसिक कार्य करने की क्षमता में कमी आ जाती है। वहीं बच्चे को इस दौरान अच्छा पोषण मिलने से बच्चे का शारीरिक एवं मानसिक विकास अच्छा रहता है। बच्चों की एकाग्रता बढ़ती है और पढ़ाई में मन लगता है।

1. आनुवंशिकता - जीन के माध्यम से माता-पिता की शारीरिक विशेषताएँ उनके बच्चों में पहुँचना आनुवंशिकता कहलाता है। यह बच्चों के सभी शारीरिक गुणों को प्रभावित करता है, जैसे कि लंबाई, वजन, शरीर की बनावट, आँखों का रंग, बालों की बनावट और यहाँ तक कि वृद्धि एवं योग्यता भी। वहीं हृदय रोग, मधुमेह, मोटापा आदि जैसी बीमारियाँ और समस्याएँ भी जीन के माध्यम से बच्चे में जा सकती है जिससे उसकी वृद्धि एवं विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हालाँकि बाहरी कारक और बच्चों को दिया जाने वाला पोषण, जीन में पहले से मौजूद गुणों पर काम करके उन्हें बेहतर तरीके से विकसित कर सकता है।

2. पर्यावरण- पर्यावरण बच्चों के विकास में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बचपन के शुरूआती दिनों में विकास को प्रभावित करने वाले कुछ पर्यावरणीय कारकों में, वह जगह जहाँ बच्चा रहता है वहाँ की भौतिक व भौगोलिक परिस्थितियाँ, उसका सामाजिक परिवेश और परिवार व उसके आस-पास के लोग शामिल हैं। यह समझना एकदम आसान है कि जिस बच्चे को उचित वातावरण मिलता है उसका विकास किसी ऐसे बच्चे से बेहतर होगा जिसके पास इसका अभाव है। बच्चे जिस परिवेश में रहता है उसकी प्रगति पर असर पड़ता है। एक अच्छा स्कूल और प्रेमपूर्ण परिवार बच्चों में सामाजिक व पारस्परिक गुणों का विकास करते हैं जो उन्हें आगे जाकर पढ़ाई और अन्य अक्सट्राकरिकुलर एक्टिविटीज जैसी बातों में बेहतरीन करने, ऊँचाइयों पर पहुँचाने में मददगार होते हैं। जो बच्चे इसके उलट तनावपूर्ण वातावरण में बढ़ते हैं वे निश्चित रूप से अलग होते हैं।

3. लिंग- बच्चे का लिंग, बच्चे के शारीरिक वृद्धि और विकास कों प्रभावित करने वाला एक अन्य प्रमुख कारक है खासकर प्यूबर्टी (युवावस्था) के करीब लड़के ओर लड़कियाँ अलग-अलग तरीके से बढ़ते हैं। लड़कियों की तुलना में लड़कों की लम्बाई और ताकत ज्यादा होती है जबकि लड़कियाँ किशोरावस्था में अपेक्षाकृत जल्दी परिपक्व होती है और लड़कों में ये विकास काफी देर से होता है उनके शरीर की बनावट में भी अंतर होता है जिसमें लड़के अधिक एथलोटिक और शारीरिक श्रम वाली गतिविधियाँ करने के लिए सक्षम होते हैं उनका स्वभाव भी भिन्न होता है, जिससे वे अलग-अलग तरह की चीजों में रुचि दिखाते हैं।

4. हार्मोन — हार्मोन इंडोक्राइन सिस्टम से संबंधित है और हमारे शरीर के विभिन्न कार्यों को प्रभावित करते हैं शरीर के कुछ विशेष भागों में स्थित अलग-अलग ग्लैंड्स (ग्रंथियों) शरीर के कार्यों को नियंत्रित करने वाले हार्मोन को रिलीज करते हैं। बच्चों में सामान्य शारीरिक वृद्धि और विकास के लिए उनका नियत समय पर कार्य करना जरूरी है। हार्मोन रिलीज करने वाली ग्लैंड्स के कामकाज में असंतुलन से बच्चे के विकास में दोष, मोटापा, व्यवहार सम्बन्धी समस्याएँ और अन्य बीमारियाँ भी हो सकती हैं। प्यूबर्टी के दौरान, गोलाउग्लैंड सेक्स हार्मोन बनाती है जो यौन अंगों का विकास तथा लड़कों और लड़कियों में यौन विशेषताओं की उपस्थिति को नियंत्रित करते हैं।

5. पोषण - पोषण यानि न्यूट्रिशन, वृद्धि का एक महत्त्वपूर्ण कारक है। क्योंकि शरीर को विकास और मरम्मत की जरूरत होती है जो कि भोजन द्वारा ही होता है कुपोषण से बच्चों में विकास संबंधी बीमारियों हो सकती हैं जो उनकी वृद्धि और विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है दूसरी ओर अधिक भोजन से मोटापा और लंबे समय तक सेहत से जुड़ी समस्याएँ भी हो सकती है जैसे कि डायबिटीज और हृदय रोग एक सन्तुलित आहार जो विटामिन, खनिज, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फैट से भरपूर हो, मस्तिष्क और शरीर के विकास के लिए आवश्यक है।

6. पारिवारिक प्रभाव—परिवार, बच्चों का पोषण करने और उसे मानसिक और सामाजिक रूप से विकसित करने में सबसे ज्यादा प्रभावशील होता है। वे अपने माता-पिता, दादा-दादी या जो कोई भी घर पर उनकी देखभाल करता है, की देखरेख में बड़े होते हैं, उन्हें एक अच्छे व्यक्ति के रूप में विकसित करने के लिए बुनियादी प्यार, देखभाल और शिष्टाचार की अवश्यकता होती है। सबसे सकारात्मक वृद्धि तब तक देखी जाती है जब परिवार विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से बच्चों के विकास मे समय, ऊर्जा और प्यार का निवेश करते हैं, जैसे कि उन्हें पढ़ाना, उनके साथ खेलना और गहरी सार्थक बातचीत करना। वे परिवार, जो बच्चों के साथ दुर्व्यवहार या उनकी उपेक्षा करते हैं वहाँ बच्चों का सकारात्मक विकास प्रभावित होता है। ये बच्चे ऐसे वयस्कों के रूप में विकसित हो सकते हैं जिनका सामाजिक कौशल अपर्याप्त होता है और जिन्हें अन्य लोगों के साथ संबंध जोड़ने में कठिनाई होती है।

7. भौगोलिक प्रभाव — आप जहाँ रहते हैं, इस बात का भी आपके बच्चों के विकास पर बहुत प्रभाव पड़ता है। वे कौन-से स्कूल में पढ़ते हैं, किस मोहल्ले में रहते, समुदाय द्वारा उन्हें कौन से अवसर पेश किए जाते हैं और उनकी संगति किस प्रकार की है आदि बच्चे के विकास को प्रभावित करने वाले कुछ सामाजिक कारक हैं। एक विकसित समुदाय में रहना जिसमें खेलने के लिए पार्क, लाइब्रेरी और कम्युनिटी सेंटर मौजूद हैं; ये सभी सुविधाएँ किसी बच्चे के कौशल, प्रतिभा और व्यवहार को विकसित करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वहीं नीरस समुदाय, कुछ बच्चों को अक्सर बाहर जाने के बजाय घर पर रहकर विडियो गेम खेलने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। यहाँ तक कि किसी जगह का मौसम भी बच्चों को दूसरी जगह एडजस्ट होने, एलर्जी और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं जैसी बातों को प्रभावित करता है।

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    अनुक्रम

  1. आहार एवं पोषण की अवधारणा
  2. भोजन का अर्थ व परिभाषा
  3. पोषक तत्त्व
  4. पोषण
  5. कुपोषण के कारण
  6. कुपोषण के लक्षण
  7. उत्तम पोषण व कुपोषण के लक्षणों का तुलनात्मक अन्तर
  8. स्वास्थ्य
  9. सन्तुलित आहार- सामान्य परिचय
  10. सन्तुलित आहार के लिए प्रस्तावित दैनिक जरूरत
  11. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  12. आहार नियोजन - सामान्य परिचय
  13. आहार नियोजन का उद्देश्य
  14. आहार नियोजन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें
  15. आहार नियोजन के विभिन्न चरण
  16. आहार नियोजन को प्रभावित करने वाले कारक
  17. भोज्य समूह
  18. आधारीय भोज्य समूह
  19. पोषक तत्त्व - सामान्य परिचय
  20. आहार की अनुशंसित मात्रा
  21. कार्बोहाइड्रेट्स - सामान्य परिचय
  22. 'वसा’- सामान्य परिचय
  23. प्रोटीन : सामान्य परिचय
  24. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  25. खनिज तत्त्व
  26. प्रमुख तत्त्व
  27. कैल्शियम की न्यूनता से होने वाले रोग
  28. ट्रेस तत्त्व
  29. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  30. विटामिन्स का परिचय
  31. विटामिन्स के गुण
  32. विटामिन्स का वर्गीकरण एवं प्रकार
  33. जल में घुलनशील विटामिन्स
  34. वसा में घुलनशील विटामिन्स
  35. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  36. जल (पानी )
  37. आहारीय रेशा
  38. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  39. 1000 दिन का पोषण की अवधारणा
  40. प्रसवपूर्व पोषण (0-280 दिन) गर्भावस्था के दौरान अतिरिक्त पोषक तत्त्वों की आवश्यकता और जोखिम कारक
  41. गर्भावस्था के दौरान जोखिम कारक
  42. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  43. स्तनपान/फॉर्मूला फीडिंग (जन्म से 6 माह की आयु)
  44. स्तनपान से लाभ
  45. बोतल का दूध
  46. दुग्ध फॉर्मूला बनाने की विधि
  47. शैशवास्था में पौष्टिक आहार की आवश्यकता
  48. शिशु को दिए जाने वाले मुख्य अनुपूरक आहार
  49. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  50. 1. सिर दर्द
  51. 2. दमा
  52. 3. घेंघा रोग अवटुग्रंथि (थायरॉइड)
  53. 4. घुटनों का दर्द
  54. 5. रक्त चाप
  55. 6. मोटापा
  56. 7. जुकाम
  57. 8. परजीवी (पैरासीटिक) कृमि संक्रमण
  58. 9. निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन)
  59. 10. ज्वर (बुखार)
  60. 11. अल्सर
  61. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  62. मधुमेह (Diabetes)
  63. उच्च रक्त चाप (Hypertensoin)
  64. मोटापा (Obesity)
  65. कब्ज (Constipation)
  66. अतिसार ( Diarrhea)
  67. टाइफॉइड (Typhoid)
  68. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  69. राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवाएँ और उन्हें प्राप्त करना
  70. परिवार तथा विद्यालयों के द्वारा स्वास्थ्य शिक्षा
  71. स्थानीय स्वास्थ्य संस्थाओं के द्वारा स्वास्थ्य शिक्षा
  72. प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रः प्रशासन एवं सेवाएँ
  73. सामुदायिक विकास खण्ड
  74. राष्ट्रीय परिवार कल्याण कार्यक्रम
  75. स्वास्थ्य सम्बन्धी अन्तर्राष्ट्रीय संगठन
  76. प्रतिरक्षा प्रणाली बूस्टर खाद्य
  77. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

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